वही प्यारे मधुर अल्फ़ाज़ मीठी रस-भरी बातें
वही रौशन रुपहले दिन वही महकी हुई रातें
वही मेरा ये कहना तुम बहुत ही ख़ूब-सूरत हो
तुम्हारे लब पे ये फ़िक़रा कि तुम ही मेरी क़िस्मत हो
वही मेरा पुराना गीत तुम बिन जी नहीं सकता
में उन होंटों की पी कर अब कोई मय पी नहीं सकता
ये सब कुछ ठीक है पर इस से जी घबरा भी जाता है
अगर मौसम न बदले आदमी उकता भी जाता है
कभी यूँ ही सही मैं और को अपना बना लेता
तुम्हारे दिल को ठुकराता तुम्हारी बद-दुआ लेता
कभी मैं भी ये सुनता तुम बड़े ही बे-मुरव्वत हो
कभी में भी ये कहता तुम तो सर-ता-पा हिमाक़त हो
*सर-ता-पा=सर से पाँव तक; हिमाक़त=मूढ़ता
अब आओ ये भी कर देखें तो जीने का मज़ा आए
कोई खिड़की खुले इस घर की और ताज़ा हवा आए
~ ख़लील-उर-रहमान आज़मी
Jun 1, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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