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Sunday, June 28, 2020

फ़ैज़ पहुँचे हैं जो बहारों से



फ़ैज़ पहुँचे हैं जो बहारों से
पूछते क्या हो दिल-निगारों से
फ़ैज़=भलाई, यश; दिल-निगारों=दिल में बने नक़्श

आशियाँ तो जला मगर हम को
खेलना आ गया शरारों से
*शरारों=चिंगारियाँ

क्या हुआ ये कि ख़ूँ में डूबी हुई
लपटें आती हैं लाला-ज़ारों से
*लाला-ज़ारों=फूलों के बाग़ान

उन में होते हैं क़ाफ़िले पिन्हाँ
दिल-शिकस्ता न हो ग़ुबारों से
*पिन्हाँ=छुपे हुए; दिल-शिकस्ता=टूटा दिल

है यहाँ कोई हौसले वाला
कुछ पयाम आए हैं सितारों से

हम से मेहर-ओ-वफ़ा की बात करो
होश की बात होशयारों से
*मेहर-ए-वफ़ा=प्रेम और वफ़ा

कू-ए-जानाँ हो दैर हो कि हरम
कब मफ़र है यहाँ सहारों से
*कू-ए-जानाँ=प्रेमिका की गली; दैर=मंदिर; हरम=काबा; मफ़र=बचाव

~ हबीब अहमद सिद्दक़ी

Jun 28, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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