Oct 13, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Friday, October 13, 2023
वो तो ख़ुश्बू है
Sunday, May 21, 2023
बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता
बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता,
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता।
सब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती हैं निगाहें,
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता।
वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में,
जो दूर है वो दिल से उतर क्यूँ नहीं जाता।
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा,
जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यूँ नहीं जाता।
वो ख़्वाब जो बरसों से न चेहरा न बदन है,
वो ख़्वाब हवाओं में बिखर क्यूँ नहीं जाता।
~ निदा फ़ाज़ली
May 21, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Tuesday, May 9, 2023
कभी कभी तो बहुत याद आने लगते हो
~ जौन एलिया
May 09, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Monday, May 8, 2023
इस हुस्न की हिफ़ाज़त कर
परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है
ज़मीं पे बैठ के क्या आसमान देखता है
मिला है हुस्न तो इस हुस्न की हिफ़ाज़त कर
सँभल के चल तुझे सारा जहान देखता है
कनीज़ हो कोई या कोई शाहज़ादी हो
जो इश्क़ करता है कब ख़ानदान देखता है
घटाएँ उठती हैं बरसात होने लगती है
जब आँख भर के फ़लक को किसान देखता है
यही वो शहर जो मेरे लबों से बोलता था
यही वो शहर जो मेरी ज़बान देखता है
मैं जब मकान के बाहर क़दम निकालता हूँ
अजब निगाह से मुझ को मकान देखता है
~ शकील आज़मी
May 08, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Friday, April 7, 2023
दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे
दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे,
उदासियों में भी चेहरा खिला खिला ही लगे।
वो सादगी न करे कुछ भी तो अदा ही लगे,
वो भोल-पन है कि बेबाकी भी हया ही लगे।
ये ज़ाफ़रानी पुलओवर उसी का हिस्सा है,
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे ।
नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही,
ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे ।
अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है,
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे।
हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा,
जो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे ।
हज़ारों भेस में फिरते हैं राम और रहीम,
कोई ज़रूरी नहीं है भला भला ही लगे ।
~ बशीर बद्र
April 07, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Thursday, April 6, 2023
बे-क़रारी सी बे-क़रारी है
वस्ल है और फ़िराक़ तारी है।
जो गुज़ारी न जा सकी हम से,
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है।
निघरे क्या हुए कि लोगों पर,
अपना साया भी अब तो भारी है।
बिन तुम्हारे कभी नहीं आई,
क्या मिरी नींद भी तुम्हारी है।
आप में कैसे आऊँ मैं तुझ बिन,
साँस जो चल रही है आरी है।
उस से कहियो कि दिल की गलियों में,
रात दिन तेरी इंतिज़ारी है।
हिज्र हो या विसाल हो कुछ हो,
हम हैं और उस की यादगारी है।
इक महक सम्त-ए-दिल से आई थी,
मैं ये समझा तिरी सवारी है।
हादसों का हिसाब है अपना,
वर्ना हर आन सब की बारी है।
ख़ुश रहे तू कि ज़िंदगी अपनी,
उम्र भर की उमीद-वारी है।
~ जौन एलिया
April 06, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Monday, April 3, 2023
शोला हूँ भड़कने की गुज़ारिश नहीं करता
शोला हूँ भड़कने की गुज़ारिश नहीं करता,
सच मुँह से निकल जाता है कोशिश नहीं करता।
गिरती हुई दीवार का हमदर्द हूँ लेकिन,
चढ़ते हुए सूरज की परस्तिश नहीं करता।
*परस्तिश=पूजा, आराधना
माथे के पसीने की महक आये न जिस से,
वो ख़ून मेरे जिस्म में गर्दिश नहीं करता।
*गर्दिश=घुमाव, चक्कर
हमदर्दी-ए-अहबाब से डरता हूँ 'मुज़फ़्फ़र',
मैं ज़ख़्म तो रखता हूँ नुमाइश नहीं करता।
*हमदर्दी-ए-अहबाब=दोस्तों की सहानुभूति
~ मुज़फ़्फ़र वारसी
April 03, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Thursday, March 30, 2023
शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है
March 30, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
March 30, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Tuesday, February 28, 2023
अहाहाहा अहाहाहा
मय-ओ-साक़ी हैं सब यकजा अहाहाहा अहाहाहा
अजब आलम है मस्ती का अहाहाहा अहाहाहा
*यकजा=एक साथ
बहार आई तुड़ाने फिर लगे ज़ंजीर दीवाने
हुआ शोर-ए-जुनूँ बरपा अहाहाहा अहाहाहा
जिन आँखों ने न देखा था कभी यक अश्क का क़तरा
चले हैं उस से अब दरिया अहाहाहा अहाहाहा
मिरे घर इस हवा में साक़ी-ओ-मुत्रिब अगर होते
तो कैसे मय-कशी करता अहाहाहा अहाहाहा
*साक़ी-ओ-मुत्रिब=शराब पिलानेवाला (ली) और संगीतज्ञ
किया 'बेदार' से आशिक़ को तू ने क़त्ल ऐ ज़ालिम
कोई करता है काम ऐसा अहाहाहा अहाहाहा
~ मीर मोहम्मदी बेदार
Feb 28, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Friday, February 24, 2023
पहले तो उस की ज़ात ग़ज़ल में समेट लूँ
पहले तो उस की ज़ात ग़ज़ल में समेट लूँ
फिर सारी काएनात ग़ज़ल में समेट लूँ
होते हैं रूनुमा जो ज़माने में रोज़-ओ-शब
वो सारे हादसात ग़ज़ल में समेट लूँ
पहले तो मैं ग़ज़ल में कहूँ अपने दिल की बात
फिर सब के दिल की बात ग़ज़ल में समेट लूँ
कोई ख़याल ज़ेहन से बच कर न जा सके
सारे तसव्वुरात ग़ज़ल में समेट लूँ
'जौहर' वो बात जिस का तअ'ल्लुक़ हो ज़ीस्त से
ऐसी हर एक बात ग़ज़ल में समेट लूँ
~ चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी
Feb 24, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Tuesday, February 14, 2023
जिन ने देखा कहा अहा-हाहा
हुस्न उस शोख़ का अहा-हाहा
जिन ने देखा कहा अहा-हाहा
ज़ुल्फ़ डाले है गर्दन-ए-दिल में
दाम क्या क्या बढ़ा अहा-हाहा
आन पर आन वो अजी ओ हो
और अदा पर अदा अहा-हाहा
नाज़ से जो न हो वो करती है
चुपके चुपके हया अहा-हाहा
ताइर-ए-दिल पे उस का बाज़-ए-निगाह
जिस घड़ी आ पड़ा अहा-हाहा
उस की फुरती और उस की लप-छप का
क्या तमाशा हुआ अहा-हाहा
बज़्म-ए-ख़ूबाँ में जब गया वो शोख़
अपनी सज-धज बना अहा-हाहा
की ओ हो-हो किसी ने देख 'नज़ीर'
कोई कहने लगा अहा-हाहा
~ नज़ीर अकबराबादी
Feb 14, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Wednesday, January 4, 2023
कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा
न आएगा यहाँ कोई न आया होगा,
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा।
दिल-ए-नादाँ न धड़क ऐ दिल-ए-नादाँ न धड़क,
कोई ख़त ले के पड़ोसी के घर आया होगा।
इस गुलिस्ताँ की यही रीत है ऐ शाख़-ए-गुल,
तू ने जिस फूल को पाला वो पराया होगा।
दिल की क़िस्मत ही में लिक्खा था अंधेरा शायद,
वर्ना मस्जिद का दिया किस ने बुझाया होगा।
गुल से लिपटी हुई तितली को गिरा कर देखो,
आँधियो तुम ने दरख़्तों को गिराया होगा।
खेलने के लिए बच्चे निकल आए होंगे,
चाँद अब उस की गली में उतर आया होगा।
'कैफ़' परदेस में मत याद करो अपना मकाँ,
अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा।
~ कैफ़ भोपाली
Jan 04, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Wednesday, December 28, 2022
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने।
*जुस्तजू=तलाश
सब का अहवाल वही है जो हमारा है आज,
ये अलग बात कि शिकवा किया तन्हा हम ने।
*अहवाल=हालात
ख़ुद पशीमान हुए, ना उसे शर्मिंदा किया,
इश्क़ की वज़्अ को क्या ख़ूब निभाया हम ने।
*वज़्अ=तौर-तरीक़ा
कौन सा क़हर ये आँखों पे हुआ है नाज़िल,
एक मुद्दत से कोई ख़्वाब न देखा हम ने।
* नाज़िल=आया हुआ
उम्र भर सच ही कहा सच के सिवा कुछ न कहा,
अज्र क्या इस का मिलेगा ये न सोचा हम ने।
*अज्र=सिला
~ शहरयार
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Tuesday, December 20, 2022
गो ज़रा सी बात पर
लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गए
गर्मी-ए-महफ़िल फ़क़त इक नारा-ए-मस्ताना है
और वो ख़ुश हैं कि इस महफ़िल से दीवाने गए
*नारा-ए-मस्ताना=मस्ती मे कही हुई बात
मैं इसे शोहरत कहूँ या अपनी रुस्वाई कहूँ
मुझ से पहले उस गली में मेरे अफ़्साने गए
वहशतें कुछ इस तरह अपना मुक़द्दर बन गईं
हम जहाँ पहुँचे हमारे साथ वीराने गए
*वहशत=पागलपन
यूँ तो वो मेरी रग-ए-जाँ से भी थे नज़दीक-तर
आँसुओं की धुँद में लेकिन न पहचाने गए
अब भी उन यादों की ख़ुश्बू ज़ेहन में महफ़ूज़ है
बार-हा हम जिन से गुलज़ारों को महकाने गए
*महफ़ूज़=सुरक्षित
क्या क़यामत है कि 'ख़ातिर' कुश्ता-ए-शब थे भी हम
सुब्ह भी आई तो मुजरिम हम ही गर्दाने गए
*कुश्ता-ए-शब=जिसका रात मे वध करना तय हो
~ ख़ातिर ग़ज़नवी
Dec 20, 2022 | e-kavya.blogspot.com
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Wednesday, December 14, 2022
एक मिनट
हज़ार कहता रहा मैं कि यार एक मिनट,
किया न उस ने मिरा इंतिज़ार एक मिनट।
मैं जानता हूँ कि है ये ख़ुमार एक मिनट,
इधर भी आई थी मौज-ए-बहार एक मिनट।
पता चले कि हमें कौन कौन छोड़ गया,
ज़रा छटे तो ये गर्द-ओ-ग़ुबार एक मिनट।
अबद तलक हुए हम उस के वसवसों के असीर,
किया था जिस पे कभी ए'तिबार एक मिनट।
अगरचे कुछ नहीं औक़ात एक हफ़्ते की,
जो सोचिए तो हैं ये दस हज़ार एक मिनट।
फिर आज काम से ताख़ीर हो गई 'बासिर',
किसी ने हम से कहा बार बार एक मिनट।
~ बासिर सुल्तान काज़मी
Dec 14, 2022 | e-kavya.blogspot.com
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Wednesday, December 7, 2022
सब कुछ अच्छा हो जाएगा
रफ़्ता रफ़्ता सब कुछ अच्छा हो जाएगा
इन-शाआल्लाह सब कुछ अच्छा हो जाएगा
आड़े-तिरछे मंज़र सीधे हो जाएँगे
उल्टा सीधा सब कुछ अच्छा हो जाएगा
दुख से सुख का रिश्ता जिस दिन जान गए हम
रोना हँसना सब कुछ अच्छा हो जाएगा
मिल जाएगा जब रस्तों से अपना रस्ता
आना जाना सब कुछ अच्छा हो जाएगा
जब रस्ते में उस की ख़ुशबू मिल जाएगी
रुकना, चलना सब कुछ अच्छा हो जाएगा
धुल जाएँगे सारे मंज़र धुल जाएँगे
हो जाएगा सब कुछ अच्छा हो जाएगा
लम्बे ठिगने एक बराबर हो जाएँगे
ऊँचा नीचा सब कुछ अच्छा हो जाएगा
माज़ी हाल और मुस्तक़िल के सब लम्हों में
नया पुराना सब कुछ अच्छा हो जाएगा
इक इक कर के सारी गिर्हें खुल जाएँगी
मेरी गुड़िया सब कुछ अच्छा हो जाएगा
प्यारा प्यारा निखरा निखरा उजला उजला
अच्छे बाबा सब कुछ अच्छा हो जाएगा
अच्छा अच्छा हो जाएगा सब कुछ अच्छा
अच्छा अच्छा सब कुछ अच्छा हो जाएगा
~ इमरान शमशाद नरमी
Dec 07, 2022 | e-kavya.blogspot.com
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Saturday, November 26, 2022
कोरे घड़े का पानी
उपलों की आग अब तक हाथों से झाँकती है
जब माँगते हैं सारे अंगूर के शरारे
काग़ज़ पे कैसे ठहरें मिसरे मिरी ग़ज़ल के
ख़ाना-ब-दोश छोरी तकती है चोरी चोरी
चिड़ियों सी चहचहाएँ पनघट पे जब भी सखियाँ
उस के लहू में शायद तासीर हो वफ़ा की
इज़्ज़त ज़मीर मेहनत दानिश हुनर मोहब्बत
देखूँ जो चाँदनी में लगता है मुझ को 'असलम'
~ असलम कोलसरी
Nov 26, 2022 | e-kavya.blogspot.com
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Tuesday, September 13, 2022
हम को तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया
हम को तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया
रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया
कैसे जीते हैं ये किस तरह जिए जाते हैं
अहल-ए-दिल की बसर-औक़ात पे रोना आया
जी नहीं आप से क्या मुझ को शिकायत होगी
हाँ मुझे तल्ख़ी-ए-हालात पे रोना आया
हुस्न-ए-मग़रूर का ये रंग भी देखा आख़िर
आख़िर उन को भी किसी बात पे रोना आया
कैसे मर मर के गुज़ारी है तुम्हें क्या मालूम
रात भर तारों भरी रात पे रोना आया
कितने बेताब थे रिम-झिम में पिएँगे लेकिन
आई बरसात तो बरसात पे रोना आया
हुस्न ने अपनी जफ़ाओं पे बहाए आँसू
इश्क़ को अपनी शिकायात पे रोना आया
कितने अंजान हैं क्या सादगी से पूछते हैं
कहिए क्या मेरी किसी बात पे रोना आया
अव्वल अव्वल तो बस एक आह निकल जाती थी
आख़िर आख़िर तो मुलाक़ात पे रोना आया
'सैफ़' ये दिन तो क़यामत की तरह गुज़रा है
जाने क्या बात थी हर बात पे रोना आया
~ सैफ़ुद्दीन सैफ़
Nov 13, 2022 | e-kavya.blogspot.com
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Thursday, August 25, 2022
तबीअ'त उदास है
साक़ी शराब ला कि तबीअ'त उदास है
मुतरिब रुबाब उठा कि तबीअ'त उदास है
रुक रुक के साज़ छेड़ कि दिल मुतमइन नहीं
थम थम के मय पिला कि तबीअ'त उदास है
चुभती है क़ल्ब ओ जाँ में सितारों की रौशनी
ऐ चाँद डूब जा कि तबीअ'त उदास है
मुझ से नज़र न फेर कि बरहम है ज़िंदगी
मुझ से नज़र मिला कि तबीअ'त उदास है
शायद तिरे लबों की चटक से हो जी बहाल
ऐ दोस्त मुस्कुरा कि तबीअ'त उदास है
मैं ने कभी ये ज़िद तो नहीं की पर आज शब
ऐ मह-जबीं न जा कि तबीअ'त उदास है
कैफ़िय्यत-ए-सुकूत से बढ़ता है और ग़म
क़िस्सा कोई सुना कि तबीअ'त उदास है
यूँही दुरुस्त होगी तबीअ'त तिरी 'अदम'
कम-बख़्त भूल जा कि तबीअ'त उदास है
~ अब्दुल हमीद अदम
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Thursday, April 28, 2022
मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए
मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए,
मिरे आज़माने वाले मुझे आज़मा के रोए।
कोई ऐसा अहल-ए-दिल हो कि फ़साना-ए-मोहब्बत,
मैं उसे सुना के रोऊँ वो मुझे सुना के रोए।
मिरी आरज़ू की दुनिया दिल-ए-ना-तवाँ की हसरत,
जिसे खो के शादमाँ थे उसे आज पा के रोए।
तिरी बेवफ़ाइयों पर तिरी कज-अदाइयों पर,
कभी सर झुका के रोए कभी मुँह छुपा के रोए।
जो सुनाई अंजुमन में शब-ए-ग़म की आप-बीती,
कई रो के मुस्कुराए कई मुस्कुरा के रोए।
~ सैफ़ुद्दीन सैफ़
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Friday, April 22, 2022
रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया
हम को तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया
रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया
कैसे जीते हैं ये किस तरह जिए जाते हैं
अहल-ए-दिल की बसर-औक़ात पे रोना आया
जी नहीं आप से क्या मुझ को शिकायत होगी
हाँ मुझे तल्ख़ी-ए-हालात पे रोना आया
हुस्न-ए-मग़रूर का ये रंग भी देखा आख़िर
आख़िर उन को भी किसी बात पे रोना आया
कैसे मर मर के गुज़ारी है तुम्हें क्या मालूम
रात भर तारों भरी रात पे रोना आया
कितने बेताब थे रिम-झिम में पिएँगे लेकिन
आई बरसात तो बरसात पे रोना आया
हुस्न ने अपनी जफ़ाओं पे बहाए आँसू
इश्क़ को अपनी शिकायात पे रोना आया
कितने अंजान हैं क्या सादगी से पूछते हैं
कहिए क्या मेरी किसी बात पे रोना आया
अव्वल अव्वल तो बस एक आह निकल जाती थी
आख़िर आख़िर तो मुलाक़ात पे रोना आया
'सैफ़' ये दिन तो क़यामत की तरह गुज़रा है
जाने क्या बात थी हर बात पे रोना आया
~ सैफ़ुद्दीन सैफ़
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Wednesday, April 6, 2022
राह आसान हो गई होगी
Apr 06, 2022 | e-kavya.blogspot.com
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