ख़ुद से मिलना मिलाना भूल गए
लोग अपना ठिकाना भूल गये
रंग ही से फ़रेब खाते रहे
ख़ुशबुएँ आज़माना भूल गये
तेरे जाते ही ये हुआ महसूस
आइने मुस्कुराना भूल गये
जाने किस हाल में हैं कैसे हैं
हम जिन्हें याद आना भूल गये
पार उतर तो गये सभी लेकिन
साहिलों पर ख़ज़ाना भूल गये
दोस्ती बंदगी वफ़ा-ओ-ख़ुलूस
हम ये शम्अ' जलाना भूल गये
*ख़ुलूस=स्नेह
~ अंजुम लुधियानवी
Jun 05, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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