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Saturday, July 9, 2016

ख़ुद से मिलना मिलाना भूल गए



ख़ुद से मिलना मिलाना भूल गए
लोग अपना ठिकाना भूल गये

रंग ही से फ़रेब खाते रहे
ख़ुशबुएँ आज़माना भूल गये

तेरे जाते ही ये हुआ महसूस
आइने मुस्कुराना भूल गये

जाने किस हाल में हैं कैसे हैं
हम जिन्हें याद आना भूल गये

पार उतर तो गये सभी लेकिन
साहिलों पर ख़ज़ाना भूल गये

दोस्ती बंदगी वफ़ा-ओ-ख़ुलूस
हम ये शम्अ' जलाना भूल गये
*ख़ुलूस=स्नेह

~ अंजुम लुधियानवी


Jun 05, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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