इस राज़ को क्या जाने साहिल के तमाशाई
हम डूब के समझे हैं दरिया तेरी गहराई
जाग ऐ मेरे हमसाया ख़्वाबों के तसलसुल से
दीवारों से आँगन में अब धूप उतर आई
*तसलसुल=लगातार, निरंतर
चलते हुए बादल के साये के त-अक्कुब में
ये तशना-लबी मुझको सहराओं में ले आई
*त-अक्कुब=पीछा करना; तशना-लबी=प्यास
ये जब्र भी देखे हैं तारीख़ की नज़रों ने
लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पायी
*जब्र=ज़ुल्म
जिस वक़्त छेड़ा किस्सा 'रज्मी' की तबाही का
क्यूँ आपकी नाज़ुक सी आँखों में नमी आई
~ मुज़फ्फर रज्मी
Jun 19, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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