Disable Copy Text

Saturday, July 9, 2016

इस राज़ को क्या जाने साहिल के



इस राज़ को क्या जाने साहिल के तमाशाई
हम डूब के समझे हैं दरिया तेरी गहराई

जाग ऐ मेरे हमसाया ख़्वाबों के तसलसुल से
दीवारों से आँगन में अब धूप उतर आई
*तसलसुल=लगातार, निरंतर

चलते हुए बादल के साये के त-अक्कुब में
ये तशना-लबी मुझको सहराओं में ले आई
*त-अक्कुब=पीछा करना; तशना-लबी=प्यास

ये जब्र भी देखे हैं तारीख़ की नज़रों ने
लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पायी
*जब्र=ज़ुल्म

जिस वक़्त छेड़ा किस्सा 'रज्मी' की तबाही का
क्यूँ आपकी नाज़ुक सी आँखों में नमी आई

~ मुज़फ्फर रज्मी


Jun 19, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment