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Saturday, July 9, 2016

वक्त से पहले सूरज भी कब

वक्त से पहले सूरज भी कब निकला है
खुद को सारी रात जला कर क्या होगा

तब तक तो ये बस्ती ही जल जाएगी
अपने घर की आग बुझा कर क्या होगा

इन कपड़ों में यादों जैसी सीलन है
इन कपड़ों को धूप दिखा कर क्या होगा

यूँ तो कभी ये ज़ख्म नहीं भर पाएंगे
दीवारों से सर टकरा कर क्या होगा

~ भारत भूषण पंत


Jun 24, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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