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ग़ज़ल : 'कबीर जयंती' पर विशेष
हमन है इश्क़ मस्ताना, हमन को होशियारी क्या,*
गुज़ारी होशियारी से, जवानी फिर गुज़ारी क्या.
धुएँ की उम्र कितनी है, घुमड़ना और खो जाना,
यही सच्चाई है प्यारे, हमारी क्या, तुम्हारी क्या.
उतर जाए है छाती में, जिगरवा काट डाले है,
मुई तनहाई ऐसी है, छुरी, बरछी, कटारी क्या.
तुम्हारे अज़्म की ख़ुशबू, लहू के साथ बहती है,
अना ये ख़ानदानी है, उतर जाए ख़ुमारी क्या.
हमन कबिरा की जूती हैं, उन्हीं के क़र्ज़दारी है,
चुकाए से जो चुक जाए, वो क़र्ज़ा क्या, उधारी क्या.
*कबीर को श्रद्धा सहित समर्पित, जिनकी पंक्ति पर यह ग़ज़ल हुई.
~ आलोक श्रीवास्तव
Jun 25, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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