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Sunday, July 16, 2017

जियो उस प्यार में



जियो उस प्यार में
जो मैं ने तुम्हें दिया है,
उस दु:ख में नहीं, जिसे
बेझिझक मैं ने पिया है।

उस गान में जियो
जो मैं ने तुम्हें सुनाया है,
उस आह में नहीं, जिसे
मैं ने तुम से छिपाया है।
उस द्वार से गुजरो
जो मैं ने तुम्हारे लिए खोला है,
उस अन्धकार से नहीं
जिस की गहराई को
बार-बार मैं ने तुम्हारी रक्षा की
भावना से टटोला है।
वह छादन तुम्हारा घर हो

जिस मैं असीसों से बुनता हूँ, बुनूँगा
वे काँटे-गोखरू तो मेरे हैं
जिन्हें मैं राह से चुनता हूँ, चुनूँगा।
वह पथ तुम्हारा हो
जिसे मैं तुम्हारे हित बनाता हूँ, बनाता रहूँगा
मैं जो रोड़ा हूँ उसे हथौड़े से तोड़-तोड़
मैं जो कारीगर हूँ, करीने से
सँवारता-सजाता हूँ, सजाता रहूँगा।

सागर के किनारे तक
तुम्हें पहुँचाने का
उदार उद्यम ही मेरा हो
फिर वहाँ जो लहर हो, तारा हो,
सोन-तरी हो, अरुण सवेरा हो,
वह सब, ओ मेरे वर्ग
तुम्हारा हो, तुम्हारा हो, तुम्हारा हो।

~ अज्ञेय


  Jun 14, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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