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Sunday, July 16, 2017

कभी ख़ुदा कभी ख़ुद से सवाल

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कभी ख़ुदा कभी ख़ुद से सवाल करते हुए
मैं जी रहा हूँ मुसलसल मलाल करते हुए
*मुसलसल=लगातार; मलाल=अफसोस

मगन था कार-ए-मोहब्बत में इस तरह कि मुझे
ख़बर न हो सकी अपना ये हाल करते हुए
*कार-ए-मोहब्बत=प्रेम के काम में

किसे बताऊँ गुज़ारा है मैं ने भी इक दौर
मिसाल होते हुए और मिसाल करते हुए
*मिसाल=उदाहरण

वो जज़्ब-ओ-शौक़ ही आख़िर अज़ाब-ए-जाँ ठहरा
हराम हो गया जीना हलाल करते हुए
*जज़्ब=भावना; अज़ाब-ए-जाँ=तक़लीफ

न कोई रंज उन आँखों में था दम-ए-रुख़्सत
न थी ज़बान में लुक्नत सवाल करते हुए
*दम-ए-रुख़्सत=जुदाइ के वक़्त; लुक्नत=(ज़बान की) लड़खड़ाहट

ये काम उस के लिए जैसे मसअला ही न था
वो पुर-सुकून था कार-ए-मुहाल करते हुए
*मसअला=मामला; पुर-सुकून=शांत; कार-ए-मुहाल=मुश्किल काम

तमाम उम्र जो लौ दें मुझे रखें आबाद
गया वो ऐसे ग़मों से निहाल करते हुए

~ मुबीन मिर्ज़ा


  Jun 17, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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