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Sunday, July 30, 2017

ख़ाली बैठे क्यूँ दिन काटें

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ख़ाली बैठे क्यूँ दिन काटें आओ रे जी इक काम करें
वो तो हैं राजा हम बनें प्रजा और झुक झुक के सलाम करें

खुल पड़ने में नाकामी है गुम हो कर कुछ काम करें
देस पुराना भेस बना हो नाम बदल कर नाम करें

दोनों जहाँ में ख़िदमत तेरी ख़ादिम को मख़दूम बनाए
परियाँ जिस के पाँव दबाएँ हूरें जिस का काम करें
*ख़ादिम=सेवा करने वाला; मख़दूम=मालिक

हिज्र का सन्नाटा खो देगी गहमा-गहमी नालों की
रात अकेले क्यूँकर काटें सब की नींद हराम करें
*हिज्र=जुदाई; नालों=शिकायतें

मेरे बुरा कहलाने से तो अच्छे बन नहीं सकते आप
बैठे बैठाए ये क्या सूझी आओ उसे बदनाम करें

दिल की ख़ुशी पाबंद न निकली रस्म-ओ-रिवाज आलम की
फूलों पर तो चैन न आए काँटों पर आराम करें

ऐसे ही काम किया करती है गर्दिश उन की आँखों की
शाम को चाहे सुब्ह बना दें सुब्ह को चाहे शाम करें

ला-महदूद फ़ज़ा में फिर कर हद कोई क्या डालेगा
पुख़्ता-कार जुनूँ हम भी हैं क्यूँ ये ख़याल-ए-ख़ाम करें
*ला-महदूद= असीमित; पुख़्ता-कार=तज़ुर्बे वाला; ख़याल-ए-ख़ाम=फिज़ूल के ख़्याल

नाम-ए-वफ़ा से चिढ़ उन को और 'आरज़ू' इस ख़ू से मजबूर
क्यूँकर आख़िर दिल बहलाएँ किस वहशी को राम करें
*ख़ू=आदत; राम= वशीभूत

~ आरज़ू लखनवी


  Jul 5 , 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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