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Sunday, July 16, 2017

ये अलग बात कि चलते रहे





































ये अलग बात कि चलते रहे सब से आगे
वर्ना देखा ही नहीं तेरी तलब से आगे

ये मोहब्बत है इसे देख तमाशा न बना
मुझ से मिलना है तो मिल हद्द-ए-अदब से आगे
*श्रद्धा की सीमा

ये अजब शहर है क्या क़हर है ऐ दिल मेरे
सोचता कोई नहीं ख़्वाब-ए-तरब से आगे
*क़हर=; ख़्वाब-ए-तरब=संतुष्टि का सपना

अब नए दर्द पस-ए-अश्क-ए-रवाँ जागते हैं
हम कि रोते थे किसी और सबब से आगे
*पस-ए-अश्क-ए-रवाँ=बहते हुए आँसुओँ के बाद

'शाज़' यूँ है कि कोई पल भी फ़ुसूँ-कार नहीं
ध्यान आते थे मिरे दिल में अजब से आगे
*फ़ुसूँ-कार=जादुई

~ ज़करिय़ा शाज़


  Jun 13, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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