सुख के साथी मिले हजारों ही, लेकिन
दुःख में साथ निभानेवाला नहीं मिला ।
जब तक रही बाहर उमर की बगिया में,
जो भी आया द्वार चांद लेकर आया,
पर जिस दिन झर गई गुलाबों की पंखुरी,
मेरा आंसू मुझ तक आते शरमाया,
जिसने चाहा, मेरे फूलों को चाहा,
नहीं किसी ने लेकिन शूलों को चाहा,
मेला साथ दिखानेवाले मिले बहुत,
सूनापन बहलानेवाला नहीं मिला।
सुख के साथी मिले हजारों ही, लेकिन
दुःख में साथ निभानेवाला नहीं मिला।
कोई रंग-बिरंगे कपड़ों पर रीझा,
मोहा कोई मुखड़े की गोराई से,
लुभा किसी को गई कंठ की कोयलिया,
उलझा कोई केशों की घुंघराई से,
जिसने देखी, बस मेरी डोली देखी,
नहीं किसी ने पर दुल्हन भोली देखी,
तन के तीर तैरनेवाले मिले सभी,
मन के घाट नहानेवाला नहीं मिला।
सुख के साथी मिले हजारों ही, लेकिन
लेकिन दुःख में साथ निभानेवाला नहीं मिला।
मैं जिस दिन सोकर जागा, मैंने देखा,
मेरे चारों ओर ठगों का जमघट है,
एक इधर से एक उधर से लूट रहा,
छिन-छिन रीत रहा मेरा जीवन-घट है,
सबकी आंख लगी थी गठरी पर मेरी,
और मची थी आपस में मेरा-तेरी,
जितने मिले, सभी बस धन के चोर मिले,
लेकिन हृदय चुरानेवाला नहीं मिला।
सुख के साथी मिले हजारों ही, लेकिन
दुःख में साथ निभानेवाला नहीं मिला।
रूठी सुबह डिठौना मेरा छुड़ा गयी,
गयी ले गयी, तरुणायी सब दोपहरी,
हंसी खुशी सूरज चंदा के बांट पड़ी,
मेरे हाथ रही केवल रजनी गहरी,
आकर जो लौटा कुछ लेकर ही लौटा,
छोटा और हो गया यह जीवन छोटा,
चीर घटानेवाले ही सब मिले यहां,
घटता चीर बढ़ानेवाला नहीं मिला
सुख के साथी मिले हजारों ही लेकिन
दुःख में साथ निभानेवाला नहीं मिला।
उस दिन जुगनू एक अंधेरी बस्ती में,
भटक रहा था इधर-उधर भरमाया-सा,
आसपास था अंतहीन बस अंधियारा,
केवल था सिर पर निज लौ का साया-सा,
मैंने पूछाः तेरी नींद कहां खोयी?
वह चुप रहा, मगर उसकी ज्वाला रोयी-
नींद चुरानेवाले ही तो मिले यहां,
कोई गोद सुलानेवाला नहीं मिला।
सुख के साथी मिले हजारों ही, लेकिन
दुःख में साथ निभानेवाला नहीं मिला।
~ गोपालदास नीरज
Jun 9, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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