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Sunday, December 17, 2017

दर्द

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दर्द का कोई
वर्ग नहीं होता
प्रजाति नहीं होती
जाति नहीं होती
दर्द, बस दर्द होता है

एक-सा स्वाद सबको देता है
सब पर एक-सा असर करता है
चाहे नज़ाकत से करे
या पूरी शिद्दत से
कोई फर्क नहीं करता
हाथ या गहरे कहीं पीठ में
कसमसाते दांत मरोड़ खाते पेट या धकधकाते दिल में
आंख ही रोती है हर दर्द के लिए
सीना ही हिलकता है हर दर्द के लिए

दर्द उठता हो कहीं भी
साझा होता है पूरे आकार में
चाहना एक ही जगाता है सब में
कि बस ढीले हो जाएं बेतरह खिंचे तंतु
बंधनहीन हों मज्जा के गुच्छे
ढूंढता है शरीर
आराम की कोई मुद्रा
इत्मीनान की एक मुद्रा

जीवन दर्द की एक यात्रा है
सैकड़ों दर्द के पड़ावों से गुजरते हैं हम
जैसे पहाड़ों पर मील के पत्थर गिनते
पार करते ऊपर उठते हैं हम
दर्द की यह यात्रा
हर एक की अपनी है
अकेली है
कुव्वत है, काबिलियत है, चाहत है

कहते हैं, दर्द को दर्द से ही राहत है
याद आता है तो रहता है
भटका दो उसे, भुला दो उसे
उलझा दो उसे दुनिया के किसी शगल में
वह भोला रम जाता है उसी में
भुला देता है वह मुझे, मैं उसे
मगर फिर शाम होते-होते जहाज का पंछी
लौट आता है अपने ठौर
ज्यादा अधिकार के साथ
गहराता है, अंधेरे के साथ अथाह सागर सा
तभी कौंधता है एक मोती गुम होने से ठीक पहले
दर्द-रहित मिलती है एक झपकी
सबसे असावधान मुद्रा में
असतर्क, समर्पण की स्थिति में
वह छोटी झपकी
आंखें खुलती हैं और
दर्द से फिर एकाकार
सतर्कता की एक और मुद्रा
राहत पाने की एक और कोशिश
दर्द की एक और मुद्रा

‍ ~ आर. अनुराधा

  Dec 17, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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