Disable Copy Text

Sunday, December 24, 2017

हर एक बात पे कहते हो



हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है
*अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू=बात करने का तरीका

न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा
कोई बताओ कि वो शोख़-ए-तुंद-ख़ू क्या है
*शोख़-ए-तुंद-ख़ू=शरारत, अकड़

ये रश्क है कि वो होता है हम-सुख़न तुम से
वगर्ना ख़ौफ़-ए-बद-आमोज़ी-ए-अदू क्या है
*रश्क़=ईर्ष्या; हम-सुख़न=बातचीत; ख़ौफ़-ए-बद-आमोज़ी-ए-अदू=दुश्मन के डराने का डर

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन
हमारे जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है
*पैराहन=लिबास; हाजत-ए-रफ़ू=रफू की ज़रूरत

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है
*जुस्तुजू=तलाश, इच्छा

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

वो चीज़ जिस के लिए हम को हो बहिश्त अज़ीज़
सिवाए बादा-ए-गुलफ़ाम-ए-मुश्क-बू क्या है
*बहिश्त=स्वर्ग; -ए-गुलफ़ाम-ए-मुश्क-बू =गुलाबी रंग की कस्तूरी जैसी महकती हुई शराब

पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो-चार
ये शीशा ओ क़दह ओ कूज़ा ओ सुबू क्या है
*खूम=शराब के बैरल; शीशा ओ क़दह ओ कूज़ा ओ सुबू= बोतल, प्याला, सुराही

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
तो किस उमीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है
*ताक़त-ए-गुफ्तार=बोलने की ताक़त

हुआ है शाह का मुसाहिब फिरे है इतराता
वगर्ना शहर में 'ग़ालिब' की आबरू क्या है
*शाह=शंहशाह; मुसाहिब=दरबारी

~ मिर्ज़ा ग़ालिब


  Dec 24, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment