तारों से सोना बरसा था, चश्मों से चांदी बहती थी
फूलों पर मोती बिखरे थे, जर्रों की किस्मत चमकी थी
कलियों के लब पर नग्मे थे, शाखों पै वज्द सा तारी था
खुशबू के खजाने लुटते थे, और दुनिया बहकी बहकी थी
ऐ दोस्त तुझे शायद वह दिन अब याद नहीं, अब याद नहीं
सूरज की नरम सुआओं से कलियों के रूप निखरते हों
सरसों की नाजुक शाखों पर सोने के फूल लचकते हों
जब ऊदे-ऊदे बादल से अमृत की धारें बहती थीं
और हल्की-हल्की खुनकी में दिल धीरे-धीरे तपते थे
ऐ दोस्त तुझे शायद वह दिन अब याद नहीं, अब याद नहीं
फूलों के सागर अपने थे, शबनम की सहबा अपनी थी
जर्रों के हीरे अपने थे, तारों की माला अपनी थी
दरिया की लहरें अपनी थीं, लहरों का तरन्नुम अपना था
जर्रों से लेकर तारों तक यह सारी दुनिया अपनी थी
ऐ दोस्त तुझे शायद वह दिन अब याद नहीं, अब याद नहीं
~ 'अज्ञात'
Dec 01, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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