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Friday, December 22, 2017

क्या बात निराली है मुझ में

 
क्या बात निराली है मुझ में किस फ़न में आख़िर यकता हूँ
क्यूँ मेरे लिए तुम कुढ़ते हो मैं ऐसा कौन अनोखा हूँ
*यकता=अद्वितीय

वो लम्हा याद करो जब तुम इस क़ल्ब-सरा में आए थे
उस रोज़ से अपना हाल है ये कभी हँसता हूँ कभी रोता हूँ
*क़ल्ब=हृदय;सरा=सराय

कुछ भूली-बिसरी यादों का अलबेला शहर बसाया है
कोई वक़्त मिले तो आ निकलो यहीं मिलता हूँ यहीं रहता हूँ

कुछ और बढ़े इस रस्ते में अन्फ़ास-ए-रिफ़ाक़त की ख़ुश्बू
तुम साथ सही हमराह सही मैं फिर भी तन्हा तन्हा हूँ
*अन्फ़ास-ए-रिफ़ाक़त=साँसों का साथ

मैं ख़ाक-बसर मैं अर्श-नशीं मैं सब कुछ हूँ मैं कुछ भी नहीं
मैं तेरे गुमाँ से पत्थर हूँ मैं तेरे यक़ीं से हीरा हूँ
*ख़ाक-बसर =धूल मे पड़ा हुआ; अर्श-नशीं=आसमान पर बैठने वाला

~ अतहर नफ़ीस


  Dec 19, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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