क्या बात निराली है मुझ में किस फ़न में आख़िर यकता हूँ
क्यूँ मेरे लिए तुम कुढ़ते हो मैं ऐसा कौन अनोखा हूँ
*यकता=अद्वितीय
वो लम्हा याद करो जब तुम इस क़ल्ब-सरा में आए थे
उस रोज़ से अपना हाल है ये कभी हँसता हूँ कभी रोता हूँ
*क़ल्ब=हृदय;सरा=सराय
कुछ भूली-बिसरी यादों का अलबेला शहर बसाया है
कोई वक़्त मिले तो आ निकलो यहीं मिलता हूँ यहीं रहता हूँ
कुछ और बढ़े इस रस्ते में अन्फ़ास-ए-रिफ़ाक़त की ख़ुश्बू
तुम साथ सही हमराह सही मैं फिर भी तन्हा तन्हा हूँ
*अन्फ़ास-ए-रिफ़ाक़त=साँसों का साथ
मैं ख़ाक-बसर मैं अर्श-नशीं मैं सब कुछ हूँ मैं कुछ भी नहीं
मैं तेरे गुमाँ से पत्थर हूँ मैं तेरे यक़ीं से हीरा हूँ
*ख़ाक-बसर =धूल मे पड़ा हुआ; अर्श-नशीं=आसमान पर बैठने वाला
~ अतहर नफ़ीस
Dec 19, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
क्यूँ मेरे लिए तुम कुढ़ते हो मैं ऐसा कौन अनोखा हूँ
*यकता=अद्वितीय
वो लम्हा याद करो जब तुम इस क़ल्ब-सरा में आए थे
उस रोज़ से अपना हाल है ये कभी हँसता हूँ कभी रोता हूँ
*क़ल्ब=हृदय;सरा=सराय
कुछ भूली-बिसरी यादों का अलबेला शहर बसाया है
कोई वक़्त मिले तो आ निकलो यहीं मिलता हूँ यहीं रहता हूँ
कुछ और बढ़े इस रस्ते में अन्फ़ास-ए-रिफ़ाक़त की ख़ुश्बू
तुम साथ सही हमराह सही मैं फिर भी तन्हा तन्हा हूँ
*अन्फ़ास-ए-रिफ़ाक़त=साँसों
मैं ख़ाक-बसर मैं अर्श-नशीं मैं सब कुछ हूँ मैं कुछ भी नहीं
मैं तेरे गुमाँ से पत्थर हूँ मैं तेरे यक़ीं से हीरा हूँ
*ख़ाक-बसर =धूल मे पड़ा हुआ; अर्श-नशीं=आसमान पर बैठने वाला
~ अतहर नफ़ीस
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