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Friday, December 8, 2017

किसे जाना कहाँ है...

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किसे जाना कहाँ है मुनहसिर होता है इस पर भी
भटकता है कोई बाहर तो कोई घर के भीतर भी
*मुनहसिर=निर्भर

किसी को आस बादल से कोई दरियाओं का तालिब
अगर है तिश्ना-लब सहरा तो प्यासा है समुंदर भी

शिकस्ता ख़्वाब की किर्चें पड़ी हैं आँख में शायद
नज़र में चुभता है जब तब अधूरा सा वो मंज़र भी
*शिकस्ता=टूटी हुई;किर्चें=छोटे छोटे टुकड़े

सुराग़ इस से ही लग जाए मिरे होने न होने का
गुज़र कर देख ही लेता हूँ अपने में से हो कर भी

जिसे परछाईं समझे थे हक़ीक़त में न पैकर हो
परखना चाहिए था आप को उस शय को छू कर भी
* पैकर=आकार

पलट कर मुद्दतों बअ'द अपनी तहरीरों से गुज़रूँ तो
लगे अक्सर कि हो सकता था इस से और बेहतर भी
*तहरीर=लिखावट

~ अखिलेश तिवारी


  Dec 08, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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