Disable Copy Text

Thursday, July 23, 2020

जान जाने को है और रक़्स में परवाना


जान जाने को है और रक़्स में परवाना है
कितना रंगीन मोहब्बत तिरा अफ़्साना है
*रक़्स=नृत्य

ये तो देखा कि मिरे हाथ में पैमाना है
ये न देखा कि ग़म-ए-इश्क़ को समझाना है
*प्रे सम्बंधी दुख

इतना नज़दीक हुए तर्क-ए-तअल्लुक़ की क़सम
जो कहानी है मिरी आप का अफ़्साना है
*तर्क-ए-तअल्लुक़=सम्बंध विच्छेद

हम नहीं वो कि भुला दें तिरे एहसान-ओ-करम
इक इनायत तिरा ख़्वाबों में चला आना है
*इनायत=कृपा

एक महशर से नहीं कम तिरा आना लेकिन
इक क़यामत तिरा पहलू से चला जाना है
*महशर=महाप्रलय

ख़ुम ओ मीना मय ओ मस्ती ये गुलाबी आँखें
कितना पुर-कैफ़ मिरे हिज्र का अफ़्साना है
*ख़ुम=शराब रखने का बड़ा मटका; लपुर-कैफ़=नशीला; हिज्र-जुदाई

~ साग़र ख़य्यामी

Jul 23, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment