Disable Copy Text

Tuesday, July 21, 2020

किस कारन इतने रंगों से यारी

किस कारन इतने रंगों से यारी किस कारन ये ढंग
जितने रंग भी चाहो ज़ीस्त में भर लो मौत का एक ही रंग
*ज़ीस्त=जीवन

नाम-ओ-नुमूद से इतनी दूरी ठीक है लेकिन आख़िर क्यूँ
सारे जहाँ से क़ौस-ए-क़ुज़ह का रिश्ता अपने आप से जंग
*नाम-ओ-नुमूद=नाम और यश; क़ौस-ए-क़ुज़ह=इंद्रधनुष

पल में धज्जी धज्जी बिखरने वाली ऐसी है ये ज़ीस्त
इक से ज़ियादा बच्चों के हाथों में जैसे कटी पतंग

उम्र बिता दी अपनों और ग़ैरों के नक़्श बनाने में
'जब अपनी तस्वीर बनाना चाही फीके पड़ गए रंग'

मैं इक लिखने वाला मुझ को बताना यार अहमद-'परवेज़'
लौह-ओ-क़लम से आगे भी है क्या ये दुनिया इतनी तंग
लौह-ओ-क़लम=भाग्य का लिखा

~ साबिर ज़फ़र

Jul 19, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment