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Friday, July 24, 2020

मरहले ज़ीस्त के दुश्वार


मरहले ज़ीस्त के दुश्वार अभी हो जाएँ
ताकि हम जीने को तय्यार अभी हो जाएँ
*मरहले=पड़ाव

ये जो कुछ लोग मिरे चार-तरफ़ हैं हर-वक़्त
यार हो जाएँ कि अग़्यार अभी हो जाएँ
*अग़्यार= अजनबी

जिस की ता'बीर है इक ख़्वाब में चलते रहना
क्यूँ न उस ख़्वाब से बेदार अभी हो जाएँ
*ता’बीर=अर्थ; बेदार=जागना

जाने फिर कोई ज़रूरत भी रहे या न रहे
जिन को होना है वो ग़म-ख़्वार अभी हो जाएँ
*ग़म-ख़्वार=दिलासा देने वाला

कोई तस्वीर सजा लेगा तो कोई तहरीर
क्यूँ न हम नक़्श-ब-दीवार अभी हो जाएँ
*तहरीर=लिखाई; नक़्श-ब-दीवार=दीवार पर लगी तस्वीर जैसे (स्थिर)

ज़िंदगी ख़ुद को बचाना है कि जाँ देना है
फ़ैसले ये भी हैं कि वार अभी हो जाएँ

एक लम्हे में बदल सकते हैं हालात 'सहर'
आप अगर शामिल-ए-दरबार अभी हो जाएँ

~ सहर अंसारी

Jul 24, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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