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Monday, July 27, 2020

तुझ को पाने के लिए ख़ुद से


तुझ को पाने के लिए ख़ुद से गुज़र तक जाऊँ
ऐसी जीने की तमन्ना है कि मर तक जाऊँ

अब न शीशों पे गिरूँ और न शजर तक जाऊँ
मैं हूँ पत्थर तो किसी दस्त-ए-हुनर तक जाऊँ

इक धुँदलका हूँ ज़रा देर में छट जाऊँगा
मैं कोई रात नहीं हूँ जो सहर तक जाऊँ

जिस के क़दमों के क़सीदों से ही फ़ुर्सत न मिले
कैसे उस शख़्स की ताज़ीम-ए-नज़र तक जाऊँ

घर ने सहरा में मुझे छोड़ दिया था ला कर
अब हो सहरा की इजाज़त तो मैं घर तक जाऊँ

अपने मज़लूम लबों पर जो वो रख ले मुझ को
आह बन कर मैं दुआओं के असर तक जाऊँ

ऐ मिरी राह कोई राह दिखा दे मुझ को
धूप ओढूँ कि तह-ए-शाख़-ए-शजर तक जाऊँ

~ सलीम सिद्दीक़ी

Jul 28, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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