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Wednesday, August 5, 2020

खाते हैं हम हचकोले


खाते हैं हम हचकोले इस पागल संसार के बीच
जैसे कोई टूटी कश्ती फँस जाए मँझधार के बीच

उन के आगे घंटों की अर्ज़-ए-वफ़ा और क्या पाया
एक तबस्सुम मुबहम सा इक़रार और इंकार के बीच
*मुबहम=धुँधला

दोनों ही अंधे हैं मगर अपने अपने ढब के हैं
हम तो फ़र्क़ न कर पाए काफ़िर और दीं-दार के बीच
*ढब=तरीके; दीं-दार=धार्मिक

इश्क़ पे बुल-हवसी का तअ'न ये भी कोई बात हुई
कोई ग़रज़ तो होती है प्यार से हर ईसार के बीच
*बुल-हवसी=वासना; ईसार=परोपकार

यूँ तो हमारा दामन बस एक फटा कपड़ा है मगर
ढूँढो तो पाओगे यहाँ सौ सौ दिल हर तार के बीच

जैसे काले कीचड़ में इक सुर्ख़ कमल हो जल्वा-नुमा
ऐसे दिखाई देते हो हम को तो अग़्यार के बीच
*अग्यार=अजनबी लोग

ये है दयार-ए-इश्क़ यहाँ 'कैफ़' ख़िरद से काम न ले
फ़र्क़ नहीं कर पाएगा मजनूँ ओ होश्यार के बीच
*दयार-ए-इश्क़=प्रेम का क्षेत्र; ख़िरद=बुद्धि

~ सरस्वती सरन कैफ़

Aug 05, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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