सहरा ही ग़नीमत है, जो घर जाओगे लोगो
वो आलम-ए-वहशत है कि मर जाओगे लोगो
*सहरा=रेगिस्तान, जंगल; आलम-ए-वहशत=इन्माद के हालात
यादों के तआक़ुब में अगर जाओगे लोगो
मेरी ही तरह तुम भी बिखर जाओगे लोगो
*तआक़ुब=शरण
वो मौज-ए-सबा भी हो तो होश्यार ही रहना
सूखे हुए पत्ते हो बिखर जाओगे लोगो
*मौज-ए-सबा=सवेरे की हवा
इस ख़ाक पे मौसम तो गुज़रते ही रहे हैं
मौसम ही तो हो तुम भी गुज़र जाओगे लोगो
*ख़ाक=धूल
उजड़े हैं कई शहर, तो ये शहर बसा है
ये शहर भी छोड़ा तो किधर जाओगे लोगो
हालात ने चेहरों पे बहुत ज़ुल्म किए हैं
आईना अगर देखा तो डर जाओगे लोगो
इस पर न क़दम रखना कि ये राह-ए-वफ़ा है
‘सरशार’ नहीं हो, कि गुज़र जाओगे लोगो
*सरशार=मस्ती में
~ सरशार सिद्दीक़ी
Aug 07, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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