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Sunday, August 9, 2020

देखता हूँ फूल और काँटे ब-हर-सू


देखता हूँ फूल और काँटे ब-हर-सू आज भी
याद करता हूँ तिरी ख़ुश्बू तिरी ख़ू आज भी
*ख़ू=आदत

जाने क्यूँ जलती सुलगती शाम के ऐवान में
फैल जाती है तिरी बातों की ख़ुश्बू आज भी
*एवान=महल

ज़ीस्त के ख़स्ता शिकस्ता गुम्बदों में गाह-गाह
गूँजता है तेरी आवाज़ों का जादू आज भी
*ज़ीस्त=जीवन; शिकस्ता=टूटा-फूटा; गाह-गाह= कोई विशिष्ट स्थान

ज़ुल्फ़ कब की आतिश-ए-अय्याम से कुम्हला गई
ज़ुल्फ़ का साया नहीं ढलता सर-ए-मू आज भी
*आतिश-ए-अय्याम=वक़्त की आग; सर-ए-मू=ज़रा सा भी, किंचितमात्र

तू ने पाने हाथ में जिस पर लिखा था मेरा नाम
वो सनोबर लहलहाता है लब-ए-जू आज भी
*सनोबर=पाइन का वृक्ष; लब-ए-जू=पानी के किनारे

वो तिरा पल-भर को मिलना फिर बिछड़ने के लिए
दिल की मुट्ठी में है इस लम्हे का जुगनू आज भी

मुद्दतें गुज़रीं मगर ऐ दोस्त तेरे नाम पर
डोल जाती है मिरे दिल की तराज़ू आज भी

~ ख़ुर्शीद रिज़वी

Aug 09, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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