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Tuesday, August 25, 2020

लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले














 लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले
अपनी ख़ुशी न आए न अपनी ख़ुशी चले
*हयात=ज़िंदगी; कज़ा=मृत्यु

हो उम्र-ए-ख़िज़्र भी तो हो मालूम वक़्त-ए-मर्ग
हम क्या रहे यहाँ अभी आए अभी चले
*उम्र-ए-ख़िज़्र=पैगम्बर ख़िज़्र की उम्र(अमर), वक़्त-ए-मर्ग़=मृत्यु के समय

हम से भी इस बिसात पे कम होंगे बद-क़िमार
जो चाल हम चले सो निहायत बुरी चले
*बद-क़िमार=नौसिखिये

बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे
पर क्या करें जो काम न बे-दिल-लगी चले

नाज़ाँ न हो ख़िरद पे जो होना है हो वही
दानिश तिरी न कुछ मिरी दानिश-वरी चले
*नाज़ाँ=घमंड; ख़िरद=बुद्धि; दानिश-वरी=ज्ञान

दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ
तुम भी चले चलो यूँ ही जब तक चली चले
राह-ए-फ़ना=विनाश की राह

जाते हवा-ए-शौक़ में हैं इस चमन से 'ज़ौक़'
अपनी बला से बाद-ए-सबा अब कभी चले
*हवा-ए-शौक़=प्रेम की हवा; बाद-ए-सबा= सुबह चलने वाली शीतल हवा

~ शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

Aug 25, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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