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Saturday, August 1, 2020

दिल के अंदर दर्द आँखों में

दिल के अंदर दर्द आँखों में नमी बन जाइए
इस तरह मिलिए कि जुज़्व-ए-ज़िंदगी बन जाइए
*जुज़्व-ए-ज़िंदगी=जीवन का हिस्सा

इक पतिंगे ने ये अपने रक़्स-ए-आख़िर में कहा
रौशनी के साथ रहिए रौशनी बन जाइए
*रक़्स-ए-आख़िर=आखिरी नृत्य

जिस तरह दरिया बुझा सकते नहीं सहरा की प्यास
अपने अंदर एक ऐसी तिश्नगी बन जाइए
*तिश्नगी=प्यास

देवता बनने की हसरत में मुअल्लक़ हो गए
अब ज़रा नीचे उतरिए आदमी बन जाइए
*मुअक्कक़=अधर में लटका हुआ

अक़्ल-ए-कुल बन कर तो दुनिया की हक़ीक़त देख ली
दिल ये कहता है कि अब दीवानगी बन जाइए
*अक़्ल-ए-कुल=बुद्धिमान

जिस तरह ख़ाली अँगूठी को नगीना चाहिए
आलम-ए-इम्काँ में इक ऐसी कमी बन जाइए
*आलम-ए-इम्काँ=सम्भावनाओं की दुनिया

आलम-ए-कसरत निहाँ है इस इकाई में 'सलीम'
ख़ुद में ख़ुद को जम्अ' कीजे और कई बन जाइए
*आलम-ए-कसरत=ज़रूरत से ज़्यादा होना; निहाँ=छुपा हुआ

~ सलीम अहमद 

Aug 1, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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