ये किस ने कह दिया आख़िर कि छुप-छुपा के पियो
ये मय है मय उसे औरों को भी पिला के पियो
ग़म-ए-जहाँ को ग़म-ए-ज़ीस्त को भुला के पियो
हसीन गीत मोहब्बत के गुनगुना के पियो
* ग़म-ए-जहाँ=दुनिया के दुख, ग़म-ए-ज़ीस्त=ज़िंदगी के दुख
छुटे न दामन-ए-ताअ'त भी वक़्त-ए-मय-नोशी
पियो तो सज्दा-ए-उल्फ़त में सर झुका के पियो
*ता’अत=पूजा
बुझे बुझे से हों अरमाँ तो क्या फ़रोग़-ए-नशात
जो सो गए हैं सितारे उन्हें जगा के पियो
*फ़रोग़-ए-नशात=उत्साह की चरम सीमा
ग़म-ए-हयात का दरमाँ हैं इश्क़ के आँसू
अँधेरी रात है यारो दिए जला के पियो
नसीब होगी बहर-कैफ़ मर्ज़ी-ए-साक़ी
मिले जो ज़हर भी यारो तो मुस्कुरा के पियो
*बहर-कैफ़=किसी भी हाल
मिरे ख़ुलूस पे शैख़-ए-हरम भी कह उट्ठा
जो पी रहे हो तो 'दर्शन' हरम में आ के पियो
*ख़ुलूस=निश्छलता
~ संत दर्शन सिंह
Aug 14, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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