एक पुराने दुख ने पूछा क्या तुम अभी वहीं रहते हो
उत्तर दिया चले मत आना मैने वो घर बदल दिया है।
जग ने मेरे सुख-पंछी के पाँखो मे पत्थर बाँधे है,
मेरी विपदाओं ने अपने पैरो मे पायल साधे है,
एक वेदना मुझसे बोली मैने अपनी आँख न खोली,
उत्तर दिया चले मत आना मैने वो उर बदल दिया है।
वैरागिन बन जाएँ वासना बना सकेगी नहीं वियोगी,
साँसो से आगे जीने की हट कर बैठा मन का योगी,
एक पाप ने मुझे पुकारा, मैने केवल यही उचारा,
जो झुक जाए तुम्हारे आगे मैने वो सर बदल दिया है।
मन की पावनता पर बैठी है कमज़ोरी आँख लगाए,
देखें दर्पण के पानी से कैसे कोई प्यास बुझाए,
खंडित प्रतिमा बोली आओ मेरे साथ आज कुछ गाओ,
उत्तर दिया मौन हो जाओ मैने वो स्वर बदल दिया है।
एक पुराने दुख ने पूछा क्या तुम अभी वहीं रहते हो,
उत्तर दिया चले मत आना मैने वो घर बदल दिया है।
~ शिशुपाल सिंह निर्धन
Aug 27, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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