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Thursday, September 10, 2020

दुनिया-ए-मोहब्बत में हम से

दुनिया-ए-मोहब्बत में हम से हर अपना पराया छूट गया
अब क्या है जिस पर नाज़ करें इक दिल था वो भी टूट गया
*दुनिया-ए-मोहब्बत=प्रेम के संसार

साक़ी के हाथ से मस्ती में जब कोई साग़र छूट गया
मय-ख़ाने में ये महसूस हुआ हर मय-कश का दिल टूट गया

जब दिल को सुकूँ ही रास न हो फिर किस से गिला नाकामी का
हर बार किसी का हाथों में आया हुआ दामन छूट गया

सोचा था हरीम-ए-जानाँ में नग़्मा कोई हम भी छेड़ सकें
उम्मीद ने साज़-ए-दिल का मगर जो तार भी छेड़ा टूट गया
*हरीम-ए-जानाँ=प्रेमिका का घर

क्या शय थी किसी की पहली नज़र कुछ इस के अलावा याद नहीं
इक तीर सा दिल में जैसे लगा पैवस्त हुआ और टूट गया
*पैवस्त=अंदर घुसा हुआ

इस नग़्मा-तराज़-ए-गुलशन ने तोड़ा है कुछ ऐसा साज़-ए-दिल
इक तार कहीं से टूट गया इक तार कहीं से टूट गया
नग़्मा-तराज़=गीतकार

~ शमीम जयपुरी

Sep 10, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

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