कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर
शिकन रह जाएगी यूँ ही जबीं पर
*जबीं=माथा
गिरी थी आज तो बिजली हमीं पर
ये कहिए झुक पड़े वो हम-नशीं पर
*हम-नशीं=साथी
बलाएँ बन के वो आईं हमीं पर
दुआएँ जो गईं अर्श-ए-बरीं पर
*अर्श-ए-बरीं=ऊँचा आसमान
ये क़िस्मत दाग़ जिस में दर्द जिस में
वो दिल हो लूट दस्त-ए-नाज़्नीं पर
*दस्त-ए-नाज़्नीं=प्रेमिका का कोमल हाथ
रुला कर मुझ को पोंछे अश्क-ए-दुश्मन
रहा धब्बा ये उन की आस्तीं पर
उड़ाए फिरती है उन को जवानी
क़दम पड़ता नहीं उन का ज़मीं पर
धरी रह जाएगी यूँही शब-ए-वस्ल
नहीं लब पर शिकन उन की जबीं पर
~ रियाज़ ख़ैराबादी
Sep 21, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment