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Thursday, September 3, 2020

क्या आए तुम जो आए घड़ी दो घड़ी

 

क्या आए तुम जो आए घड़ी दो घड़ी के बाद
सीने में होगी साँस अड़ी दो घड़ी के बाद

क्या रोका अपने गिर्ये को हम ने कि लग गई
फिर वो ही आँसुओं की झड़ी दो घड़ी के बाद
*गिर्ये=रोना

कोई घड़ी अगर वो मुलाएम हुए तो क्या
कह बैठेंगे फिर एक कड़ी दो घड़ी के बाद

उस लाल-ए-लब के हम ने लिए बोसे इस क़दर
सब उड़ गई मिसी की धड़ी दो घड़ी के बाद
*मिसी=दाँतों के षृंगार का मंजन; धड़ी=(5 किलो के बराबर का वज़न)

अल्लाह रे ज़ोफ़-ए-सीना से हर आह-ए-बे-असर
लब तक जो पहुँची भी तो चढ़ी दो घड़ी के बाद
ज़ोफ़=कमज़ोर

कल उस से हम ने तर्क-ए-मुलाक़ात की तो क्या
फिर उस बग़ैर कल न पड़ी दो घड़ी के बाद
तर्क-ए-मुलाक़ात=सम्बंध विच्छेद

थे दो घड़ी से शैख़ जी शेख़ी बघारते
सारी वो शेख़ी उन की झड़ी दो घड़ी के बाद

कहता रहा कुछ उस से अदू दो घड़ी तलक
ग़म्माज़ ने फिर और जड़ी दो घड़ी के बाद
अदू=दुश्मन; ग़म्माज़=(आँख के इशारे से) चुगलखोर

परवाना गिर्द शम्अ के शब दो घड़ी रहा
फिर देखी उस की ख़ाक पड़ी दो घड़ी के बाद

तू दो घड़ी का वादा न कर देख जल्द आ
आने में होगी देर बड़ी दो घड़ी के बाद

गो दो घड़ी तक उस ने न देखा इधर तो क्या
आख़िर हमीं से आँख लड़ी दो घड़ी के बाद

क्या जाने दो घड़ी वो रहे 'ज़ौक़' किस तरह
फिर तो न ठहरे पाँव घड़ी दो घड़ी के बाद

~ शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

Sep 03, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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