जा छुपे अपनी ख़्वाब-गाहों में
पड़ गए हैं गुलाबी डोरे से
रात की शबनमी निगाहों में
सीम तन अप्सराओं के झुरमुट
महव-ए-परवाज़ हैं फ़ज़ाओं में
रात-रानी की दिल-नशीं ख़ुश्बू
घुल गई मनचली हवाओं में
*सीम तन=चाँदी से बदन; महव-ए-परवान=उड़ान में
झील की बे-क़रार जल-परियाँ
आ के साहिल को चूम जाती हैं
दम-ब-दम मेरी डूबती नज़रें
तेरी राहों पे घूम जाती हैं
मुंतज़िर है उदास पगडंडी
एक संगीत रेज़ आहट की
राह तकती हैं अध-खुली कलियाँ
तेरी मासूम मुस्कुराहट की
*मुंतज़िर=इंतज़ारे में; रेज़=जो बिखर जाए
जाने कितने ही रत-जगे बीते
आरज़ूओं की नर्म जानों पर
सो गए थक के दर्द के मारे
आस की खुरदुरी चटानों पर
~ शाहिद अख़्तर
Sep 06, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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