Disable Copy Text

Wednesday, September 23, 2020

बहुत दूर से एक आवाज़ आई

 

बहुत दूर से एक आवाज़ आई
मैं, इक ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता हूँ, कोई मुझे गुदगुदाए
मैं तख़्लीक़ का नग़्मा-ए-जाँ-फ़ज़ा हूँ, मुझे कोई गाए
मैं इंसान की मंज़िल-ए-आरज़ू हूँ मुझे कोई पाए
बहुत दूर से एक आवाज़ आई

*ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता=अधखिली कली; तख़्लीक़=सृजन; नग़्मा-ए-जाँ-फ़ज़ा=जीवंत गीत

मैं हाथों में ले कर तजस्सुस कि मिशअल
बहुत दूर पहुँचा सितारों से आगे
मिरी रहगुज़र कहकशाँ बन के चमकी
मरे साथ आई उफ़ुक़ के किनारे
मिरे नक़्श-ए-पा बन गए चाँद सूरज
भड़कते रहे आरज़ू के शरारे

*तजस्सुस=जिज्ञासा; उफ़ुक़=क्षितिज; नक़्श-ए-पा=पैरों के निशान; शरारे=चिंगारिया

वो आवाज़ तो आ रही है मुसलसल
मगर अर्श की रिफ़अतों से उतर कर
मैं फ़र्श-ए-यक़ीं पर खड़ा सोचता हूँ
हर इक जादा-ए-रंग-ओ-बू से गुज़र कर
मिरी जुस्तुजू इंतिहा तो नहीं है
अभी और निखरेंगे रंगीं नज़ारे
ये बे-नूर ज़र्रे बनेंगे सितारे
सितारे बनेंगे अभी माह-पारे

*मुसल्सल=लगातार; अर्श=आसमान; रिफ़अतों=ऊँचाइयाँ; जादा-ए-रंग-ओ-बू=रंगीन और सुगंधित राह

ये आवाज़ जादू जगाती रहेगी
ये मंज़िल यूँही गीत गाती रहेगी
नए आदमी को नए कारवाँ को
पयाम-ए-तजस्सुस सुनाती रहेगी
*पयाम-ए-तजस्सुस=उत्सुकता का संदेश

~ रिफ़अत सरोश

Sep 23, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

No comments:

Post a Comment