Disable Copy Text

Friday, September 4, 2020

हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का मौसम

 

हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का मौसम निकल गया
ऐ दर्द-ए-इश्क़ जाग ज़माना बदल गया
*हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार=प्रेयसी से मिलने बिछड़ने

कब तक ये रोज़-ए-हश्र सुन ऐ शाम-ए-इंतिज़ार
क्या रात अब न आएगी सूरज तो ढल गया
*रोज़-ए-हश्र=फ़ैसले का दिन

अब के कहाँ से आए हो सावन के बादलो
देखो तो सारा बाग़ ही बरखा से जल गया

जाऊँ कहाँ कि ताब नहीं अर्ज़-ए-नग़्मा की
पानी में आग लग गई पत्थर पिघल गया
*अर्ज़-ए-नग़्मा=गीत प्रस्तुति

सातों सुरों के राग से जलती है दिल की आग
बाद-ए-फ़ना मैं भी मिरा शो'ला सँभल गया
*बाद-ए-फ़ना=मृत्यु की हवा

उस की सदा से राग निकाले 'शहाब' ने
इक शब लगी वो आग कि नादान जल गया

~ शहाब जाफ़री

Sep 04, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

No comments:

Post a Comment