नहीं चुनी मैंने वो ज़मीन जो वतन ठहरी,
नहीं चुना मैंने वो घर जो खानदान बना,
नहीं चुना मैंने वो मजहब जो मुझे बख्शा गया,
नहीं चुनी मैंने वो ज़बान जिसमें माँ ने बोलना सिखाया,
और अब
मैं इन सबके लिए तैयार हूँ,
मरने मारने पर!
~ फ़ज़्ल ताबिश
Mar 07, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
नहीं चुना मैंने वो घर जो खानदान बना,
नहीं चुना मैंने वो मजहब जो मुझे बख्शा गया,
नहीं चुनी मैंने वो ज़बान जिसमें माँ ने बोलना सिखाया,
और अब
मैं इन सबके लिए तैयार हूँ,
मरने मारने पर!
~ फ़ज़्ल ताबिश
Mar 07, 2015|e-kavya.blogspot.com
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