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Thursday, March 17, 2016

हँसी के तार के होते हैं



हँसी के तार के होते हैं ये बहार के दिन।
हृदय के हार के होते हैं ये बहार के दिन।

निगह रुकी कि केशरों की वेशिनी ने कहा,
सुगंध-भार के होते हैं ये बहार के दिन।

कहीं की बैठी हुई तितली पर जो आँख गई,
कहा, सिंगार के होते हैं ये बहार के दिन।

हवा चली, गले खुशबू लगी कि वे बोले,
समीर-सार के होते हैं ये बहार के दिन।

नवीनता की आँखें चार जो हुईं उनसे,
कहा कि प्यार के होते हैं ये बहार के दिन।

~ सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला


  Mar 05, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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