Disable Copy Text

Thursday, March 17, 2016

एक काबुली वाले की कहते हैं



एक काबुली वाले की कहते हैं लोग कहानी,
लाल मिर्च को देख गया भर उसके मुँह में पानी।

सोचा, क्या अच्छे दाने हैं, खाने से बल होगा,
यह जरूर इस मौसम का कोई मीठा फल होगा।

एक चवन्नी फेंक और झोली अपनी फैलाकर,
कुंजड़िन से बोला बेचारा ज्यों-त्यों कुछ समझाकर!

‘लाल-लाल पतली छीमी हो चीज अगर खाने की,
तो हमको दो तोल छीमियाँ फकत चार आने की।’

‘हाँ, यह तो सब खाते हैं’-कुँजड़िन बेचारी बोली,
और सेर भर लाल मिर्च से भर दी उसकी झोली!

मगन हुआ काबुली, फली का सौदा सस्ता पाके,
लगा चबाने मिर्च बैठकर नदी-किनारे जाके!

मगर, मिर्च ने तुरत जीभ पर अपना जोर दिखाया,
मुँह सारा जल उठा और आँखों में पानी आया।

पर, काबुल का मर्द लाल छीमी से क्यों मुँह मोड़े?
खर्च हुआ जिस पर उसको क्यों बिना सधाए छोड़े?

आँख पोंछते, दाँत पीसते, रोते औ रिसियाते,
वह खाता ही रहा मिर्च की छीमी को सिसियाते!

इतने में आ गया उधर से कोई एक सिपाही,
बोला, ‘बेवकूफ! क्या खाकर यों कर रहा तबाही?’

कहा काबुली ने-‘मैं आदमी नहीं ऐसा-वैसा!
जा तू अपनी राह सिपाही, मैं खाता हूँ पैसा।’

~ रामधारी सिंह 'दिनकर'


  Mar 01, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment