Disable Copy Text

Thursday, March 17, 2016

बात करनी मुझे मुश्किल




बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी

ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-क़रार
बेक़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी
*सब्र-ओ-क़रार=धैर्य, संतुष्टि

चश्म-ए-क़ातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसे अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी
*चश्म-ए-क़ातिल=क़ातिल निगाहें

उन की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू
कि तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो न थी
*माइल=प्रभावित

अक्स-ए-रुख़-ए-यार ने किस से है तुझे चमकाया
ताब तुझ में माह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी
*अक्स-ए-रुख़-ए-यार=(प्रेमिका) चेहरे का प्रतिबिम्ब; ताब=चमक; माह-ए-कामिल=पुर्णिमा का चाँद

क्या सबब तू जो बिगड़ता है 'ज़फ़र' से हर बार
ख़ू तेरी हूर-ए-शमाइल कभी ऐसी तो न थी
*सबब=कारण; ख़ू=आदत; हूर-ए-शमाइल=अत्यंत सुंदर और सदाचारी स्त्री

~ बहादुर शाह ज़फ़र


  Mar 02, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment