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Thursday, March 17, 2016

प्रात नभ था बहुत नीला

प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसा
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
बहुत काली सिल जरा-से लाल केसर से
कि धुल गयी हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और...
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।

~ शमशेर बहादुर सिंह


  Mar 11, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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