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Thursday, March 17, 2016

आँख बचा न किरकिरा कर दो



आँख बचा (कर) न किरकिरा कर दो इस जीवन का मेला।
कहाँ मिलोगे किसी विजन में - न हो भीड़ का जब रेला॥
*विजन=जनहीन, एकांत

दूर कहाँ तक दूर, थका भरपूर चूर सब अंग हुआ।
दुर्गम पथ मे विरथ दौड़कर खेल न था मैने खेला॥
*विरथ=पैदल

कहते हो 'कुछ दुःख नही', हाँ ठीक, हँसी से पूछो तुम।
प्रश्न करो टेढ़ी चितवन से, किस किस-को किसने झेला॥

आने दो मीठी मीड़ो से नूपुर की झनकार, रहो।
गलबाहीं दे हाथ बढ़ाओ, कह दो प्याला भर दे, ला॥
*मीड़=(संगीत में) एक स्वर से दूसरे स्वर में जाना

निठुर इन्हीं चरणों में मैं रत्नाकर हृदय उलीच रहा।
पुलकिल, प्लावित रहो, बनो मत सूखी बालू का वेला॥
*रत्नाकर=रत्नों की खान; पुलकिल=प्रफुल्लित; प्लावित=जलमग्न

‍~ जयशंकर प्रसाद


  Mar 14, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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