देखता हूं रोज़ उस तारे को
ये जाली में से यूं टिमटिमाता है
जैसे बारीक दुपट्टे में से
कोई बार बार नयन मिलाता है
~ कृष्ण बेताब
Mar 01, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
ये जाली में से यूं टिमटिमाता है
जैसे बारीक दुपट्टे में से
कोई बार बार नयन मिलाता है
~ कृष्ण बेताब
Mar 01, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment