आज नदी बिलकुल उदास थी
सोयी थी अपने पानी में
उसके दर्पण पर
बादल का वस्त्र पड़ा था।
मैंने उसको नहीं जगाया
दबे पाँव घर वापस आया।
~ केदारनाथ अग्रवाल
Mar 10, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
सोयी थी अपने पानी में
उसके दर्पण पर
बादल का वस्त्र पड़ा था।
मैंने उसको नहीं जगाया
दबे पाँव घर वापस आया।
~ केदारनाथ अग्रवाल
Mar 10, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment