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Sunday, September 6, 2015

मैकदा था, चाँदनी थी, मैं न था



मैकदा था, चाँदनी थी, मैं न था,
इक मुजस्सम बेख़ुदी थी, मैं न था।
*मुजस्सम=साकार; बेख़ुदी=उन्माद

इश्क़ जब दम तोड़ता था, तुम न थे,
मौत जब सर धुन रही थी, मैं न था।

तूर पर छेड़ा था जिसने आपको,
वो मेरी दीवानगी थी, मैं न था।
*तूर=(मूसा जिसने) तूर पर्वत (पर खुदा से बात की थी)

वो हसीं बैठा था जब मेरे क़रीब,
लज़्ज़्ते-हमसाईगी थी, मैं न था।
*लज़्ज़्ते-हमसाईगी=सामीप्य का आनंद

मयकदे के मोड़ पर रुकती हुयी,
मुद्दतों की तिश्नगी थी, मैं न था।
*तिश्नगी=प्यास

मैं औ' उस गुञ्चा-दहन की आरज़ू,
आरज़ू की सादगी थी, मैं न था।
*गुञ्चा-दहन=काली ले मुख वाली (प्रियतमा)

गेसूओं के साये में आरामकश,
सर-बरहना ज़िंदगी थी, मैं न था।
*गेसुओं=केशों के; आरामकश= आराम कर रही
सर-बरहना=नंगे सिर

दैरो-काबा में 'अदम' हैरत फ़रोश,
दो-जहाँ की बदज़नी थी, मैं न था।
*दैरो-काबा=मंदिर-मस्जिद; हैरत फ़रोश=आश्चर्यचकित; बदज़नी=बुरा स्वभाव

~ अब्दुल हमीद 'अदम'


  Sep 6, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 

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