
कितना मोहक रूप,
नयन ही बतलाएंगे,
कितना पागल प्यार,
स्वप्न ही समझाएंगे।
हर पपड़ी है एक
जलधि की शेष निशानी,
कितनी गहरी प्यास, अधर से जान सकोगे।
चरणों का इतिहास डगर से जान सकोगे।
पल-पल का है साथ,
मगर पल-पल की दूरी,
फीका स्वर्ण -प्रभात,
विफल संध्या सिंदूरी।
तन छूती जल-धार
मगर जीवन रेतीला,
तट के मन की पीर लहर से जान सकोगे।
चरणों का इतिहास डगर से जान सकोगे।
संध्या की थाली में
कितने दीप हँसे थे,
पावस की स्याही ने
कितने दीप डसे थे!
किस कुर्बानी ने
सूरज की भाग्य लिखा था
ऊषा की रंगीन नजर से जान सकोगे।
चरणों का इतिहास डगर से जान सकोगे।
प्रतिभा वाले बीज
अंगारों में पलते हैं।
गीतों वाले फूल
अश्रु-तट पर खिलते हैं।
मधुर मिलन का पता
विरह-पुर में पाओगे,
मधु-मदिरा का मोल ज़हर से जान सकोगे।
चरणों का इतिहास डगर से जान सकोगे।
~ 'गोरखनाथ'
Sep 20, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment