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Saturday, September 26, 2015

न था कुछ तो ख़ुदा था,

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता ।

हुआ जब ग़म से यूँ बे-हिस तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता गर जुदा तन से, तो ज़ानू पर धरा होता

*बे-हिस=संवेदनाशून्य; ज़ानू=घुटनों पर बैठे हुये, कमर और घुटनों के बीच का शरीर का हिस्सा 


हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता

~ ग़ालिब

  Sep 23, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 

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