
बेवफ़ा गर कहूँ - तो कहते हैं
क्या हर इक से वफ़ा करे कोई
जाये गर जाँ तो सौ हैं तदबीरें
जाये गर दिल तो क्या करे कोई
*तदबीरें =सुलझाव
कोई अपनी ख़ता तो हो मालूम
ऊज्र किस बात का करे कोई
*ऊज्र=सफ़ाई
तुम से बे-रहम पर न दिल आए
और आए तो क्या करे कोई
सैकड़ों बातें कह के कहते हैं
फिर हमें क्यूँ ख़फ़ा करे कोई
कोई कब तक न दे जवाब तुम्हें
चुपका कब तक सुना करे कोई
शिकवा उस बुत का हर किसी से 'निज़ाम'
उस से कह दे ख़ुदा करे, कोई।
~ निज़ाम रामपुरी
Sep 10, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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