Disable Copy Text

Saturday, January 27, 2018

आज है मधुमास रे मन

Image may contain: 1 person, text

आज है मधुमास रे मन!

आज फूलों से सुवासित हो उठी तृष्णा विजन की
आज पीले मधुकणों से भर गई छाती पवन की
आज पुरवाई घने वन में चली परिमल भरी-सी
स्वर्ण कलशों में सजल केसर लिए चंपापरी-सी
आज है मधुमास रे मन!

नील पुलकों में तरंगित चित्रलेखा बन गई छवि
दूर तक सहकार श्यामल रेणुका से घिर चला कवि
लो प्रखर सन सन सुरभि से नागकेशर रूप विह्वल
बज उठी किंकिणि मधुप रव से हुई वनबाल चंचल
आज है मधुमास रे मन!

नील सागर से उठी है कुंतलों में कौन अपने
स्निग्ध नीलाकाश प्राणों में जगाता नील सपने
आज किसके रूप से जलसिक्त धूसित कामिनी वन
आज संगीहीन मेरे प्राण पुलकित हैं अचेतन
आज है मधुमास रे मन!

अनमने फागुन दिवस ये हो रहे हैं प्राण कैसे
आज संध्या से प्रथम ही भर चला मन लालसा से
आज आँधी-सा प्रखर है वेग पिक की काकली में
एक अंगूरी पिपासा मुक्त अंगों की गली में
आज है मधुमास रे मन!

~ रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'


  Jan 22, 2018| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment