आज केतकी फूली।
नभ के उज्ज्वल तारों से हो,
निर्मित जग में झूली।
आज केतकी फूली।
अन्तरिक्ष का बिखरा वैभव
पृथ्वी पर संचित है,
इसीलिए यह कलिका नभ-छवि
ले भू पर कुसुमित है,
पवन चूम जाता है, मेरी
इच्छा से परिचित है,
इस मिलाप मे ही सारे
जीवन का सुख अंकित है,
मैंने आज प्रेम की उँगली से
वह चिर छवि छू ली।
आज केतकी फूली।
नभ के उज्ज्वल तारों से हो
निर्मित जग में झूली,
आज केतकी फूली।
~ रामकुमार वर्मा
Jan 21, 2018| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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