बाद मुद्दत उन्हें देख कर यूँ लगा
जैसे बेताब दिल को क़रार आ गया
आरज़ूओं के गुल मुस्कुराने लगे
जैसे गुलशन में जाने बहार आ गया
तिश्ना नज़रें मिली शोख़ नज़रों से जब
मय बरसने लगी जाम भरने लगे
साक़िया आज तेरी ज़रूरत नहीं
बिन पिये बिन पिलाये ख़ुमार आ गया
रात सोने लगी सुबह होने लगी
शम्अ बुझने लगी दिल मचलने लगे
वक़्त की रौशनी में नहायी हुई
ज़िन्दगी पे अजब सा निखार आ गया
हर तरफ मस्तियाँ हर तरफ दिलकशी
मुस्कुराते दिलों में खुशी ही खुशी
कितना चाहा मगर फिर भी उठ न सका
तेरी महफ़िल में जो एक बार आ गया
~ अली सरदार जाफ़री
जैसे बेताब दिल को क़रार आ गया
आरज़ूओं के गुल मुस्कुराने लगे
जैसे गुलशन में जाने बहार आ गया
तिश्ना नज़रें मिली शोख़ नज़रों से जब
मय बरसने लगी जाम भरने लगे
साक़िया आज तेरी ज़रूरत नहीं
बिन पिये बिन पिलाये ख़ुमार आ गया
रात सोने लगी सुबह होने लगी
शम्अ बुझने लगी दिल मचलने लगे
वक़्त की रौशनी में नहायी हुई
ज़िन्दगी पे अजब सा निखार आ गया
हर तरफ मस्तियाँ हर तरफ दिलकशी
मुस्कुराते दिलों में खुशी ही खुशी
कितना चाहा मगर फिर भी उठ न सका
तेरी महफ़िल में जो एक बार आ गया
~ अली सरदार जाफ़री
Jan 02, 2018| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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