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Sunday, January 7, 2018

अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा

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अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए
अपनी नज़र में आप को रुस्वा किया न जाए
*तक़ाज़ा=माँगना, पूछना

हम हैं तिरा ख़याल है तेरा जमाल है
इक पल भी अपने आप को तन्हा किया न जाए
*जमाल=सुंदरता

उठने को उठ तो जाएँ तिरी अंजुमन से हम
पर तेरी अंजुमन को भी सूना किया न जाए
*अंजुमन=सभा

उन की रविश जुदा है हमारी रविश जुदा
हम से तो बात बात पे झगड़ा किया न जाए
*रविश= अंदाज़, मिज़ाज

हर-चंद ए'तिबार में धोके भी हैं मगर
ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया न जाए

लहजा बना के बात करें उन के सामने
हम से तो इस तरह का तमाशा किया न जाए

इनआ'म हो ख़िताब हो वैसे मिले कहाँ
जब तक सिफ़ारिशों को इकट्ठा किया न जाए

इस वक़्त हम से पूछ न ग़म रोज़गार के
हम से हर एक घूँट को कड़वा किया न जाए

~ जाँ निसार अख़्तर


  Jan 07, 2018| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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